कपास  की उन्नत खेती

कपास की उन्नत खेती


विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश भारत है कपास का देश में औद्योगिक और कृषि अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान है कपास को सफेद सोना कहना भी गलत नहीं होगा कपास की खेती शिक्षित और अशिक्षित दोनों क्षेत्रों में की जा सकती हैं इसके साथ अतिरिक्त फसल लेकर अधिक अतिरिक्त लाभ भी कमा सकते हैं जिन किसान भाइयों के पास पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के लिए जल उपलब्ध है वह इस फसल को मई माह में लगा सकते हैं अन्यथा मानसून की उपयुक्त वर्षा होते ही लगा सकते हैं कपास के लिए कम से कम 50 सेंटीमीटर वर्षा होना आवश्यक है और 130 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा हानिकारक है पास के लिए एक अच्छी जल धारण वाली प्रकाश जल निकास वाली क्षमता वाली भूमि हो तो बहुत अच्छा है दोमट मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती हैं इसके लिए उपयुक्त पीएच मान 5.5 से 8 तक है



खेत की तैयारी

भारत में कई स्थानों पर कपास की खेती सिंचाई आधारित होती हैं किसान कपास की खेती के लिए एक सिंचाई कर एक से दो जुताई करनी चाहिए तीन से चार हल्की जुताई कर पाटा लगाकर बुवाई करनी चाहिए और इस बात का भी ध्यान रखें की खेत तैयार करते वक्त खेत पूरी तरह समतल हो जिससे कि उसकी जल धारण क्षमता और जल निकाल क्षमता अच्छी हो कई किसान कपास की वर्षा आधारित काली भूमि में उगाई करते हैं इन खेतों को तैयार करने के लिए एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से रवि फसल की कटाई के बाद करनी चाहिए और जिस से ध्यान रखें कि सब खरपतवार नष्ट हो गए हो और खेत का समतल हो यह भी ध्यान रखें

कपास की किस्मे एवं बीज की मात्रा

भारत देश में B T कपास अधिक प्रचलित है बीटी कपास की कई प्रजातियां भारत में प्रचलित हैं जिनमें से आरसीएस 308, आरसीएच 134, आरसीएच 314, आरसीएच 317, एमआरसी 6301, एमआरसी 6304 आदि में 12 से 16 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें बीच लगभग 5 सेंटीमीटर की गहराई तक हुआ जाना चाहिए इस बात का भी ध्यान रखें

कपास की बुवाई

अगर आप कपास की जैविक खेती करते हैं तो कपास के बीजों को ट्राइकोडरमा और सुदोमोनास से उपचारित कर के बुवाई करें कपास की बुवाई करते वक्त ध्यान रखें कि पौधों से पौधों की दूरी 2 से 3 फीट तक की रहे औरजिन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती हैं वहां मेड बनाकर उन पर बुवाई करी जाए तो और अच्छा है

खाद का प्रयोग

बुवाई के 1 महीने पहले गोबर की अच्छी साड़ी खाद को मुंह में में अच्छी तरह मिलाकर जुताई करें और पोटाश की मात्रा का भी ध्यान रखे बुवाई के बाद पांच से छह सिंचाई करें वह फूल आते समय भी सिंचाई करें अंकुरण के बाद सिंचाई 25 से 30 दिन के बाद की जानी चाहिए ड्रिप संयंत्र द्वारा सिंचाई की जाए तो और भी उत्पादन में वृद्धि होती है इस पद्धति से सिंचाई करने पर समय और जल की दोनों की बचत होती है और सिंचाई भी अच्छी होती है और रूई की गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी होती हैं और बीमारियों का प्रकोप भी कम रहता है समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहे खरपतवार का ध्यान रखें

कपास की चुनाई

कपास के फलियां पूरी खेल जाने पर उनकी चुनाव करें दो चरण में चुनाव करें पहले चरण में 50 से 70% परियों की चुनाई करें दूसरे चरण में बची हुई शेर सारी परियों की चुनाई करें और इस बात का भी ध्यान रखें कि सारी परियां पूरी तरह खुल चुकी हो सभी बातों का ध्यान रखने पर कपास में 25 से लेकर 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कपास पैदावार ली जा सकती हैं इसमें कपास किस में और खेत की जलवायु पर भी निर्भरता रहती हैं अथवा अधिक लाभ कमाने के लिए बीच में दूसरी फसलों को भी आप ले सकते हैं जैसे उड़द मूंगफली सोयाबीन मूंग आदि